प्रतिभा का पहलू

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कहानी-- प्रतिभा का पहलू आर. एन. सुनगरया, श्रवण कुमार को उदासीन बुझा-बुझा, दिग्‍भ्रमित, अक्रियाशील, निठल्‍ला, बैठे-ठाले, जहॉं-वहॉं, इधर-उधर, निरूद्धेश डोलते-डालते, घूमते-घामते, भोजन के समय पर क्‍वार्टर लौट आता है। धर्मशाला समझकर। कोई चिन्‍ता-फिकर नहीं।