जुगाड़ (व्यंग्य)

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जुगाड़ अरे.....आप शीर्षक पढ़कर क्या सोचने लगे? चलिए तो फिर आपकी और हमारी सोच को ही आगे बढ़ाते हैं । हमारा समाज कुछ खास नियमों से चलता है। इन नियमों से हट कर यदि आपको कुछ करना हो तो करना होता है.. " जुगाड़" . . । गरीब हमेशा ही अपनी रोजी-रोटी के तो अमीर और पैसे के जुगाड़ में लगा रहता है । नेता वोट के, अभिनेता प्रसिद्धि के और बाबा लोग भक्तों के जुगाड़ में लगे रहते हैं ‌। देखा जाए आप और मैं भी कोई कम तो नहीं । आप इसी