उपसंहार ( कालिदास के काव्य में सौंदर्य विधान)

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उपसंहारप्रथम अध्याय1. अमरकोष 3/1/52-532. क्षणे-क्षणे यन्न्वतामुपैति।तदेव रूप रमणीयता: ।। (माघ4/11)3. समै समै सुंदर सबै, रूप कुरूप न कोय जाकी रूची देती जिते, जित जेतौ सुन्दर होय।। (बिहारी सतसई-722)4. इयमधिक मनोज्ञा वल्कलेनापि तन्वी।किमिव हि मधुराणां मण्डनं नाकृतीनाम:॥ ( अभि . शाकु . 1 / 19 )5. रावरे रूप की रीति अनूप ।नयो - नयो लागत, ज्यों ज्यों निहारिये ॥ " ( घनानन्द )6. महाकवि कालिदास - रमाशंकर तिवारी7. प्रियेषु सौभाग्यफला हि चारुता (कु . सं . 5 / 1 ) 8. उज्ज्वल वरदान चेतना का / सौन्दर्य जिसे सब कहते है ॥ (कामायनी, लज्जा सर्ग प्र . / 02 )9. आधुनिक काल में