स्थानीय बोली का विकास

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बाजारवाद ने स्थानीय भाषा को करीब-करीब समाप्त कर दिया है। एक बालक जन्म के बाद अपनी माँ से भाषा सीखता था। घर के वातवरण तथा आसपास के वातावरण से प्रभावित होकर बच्चा अपनी मातृभाषा सीख लेता था। यह प्रक्रिया इतनी धीमी होती थी कि किसी का ध्यान ही नहीं जाता था। बच्चा अपनी मातृभाषा में धाराप्रवाह बोलने की महारत हासिल कर लेता था। धीरे-धीरे समय बदला। बाजारवाद हावी हुआ। भूमंडलीकरण तथा वैश्वीकरण की गति तेज हुई। ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ की अवधारणा मजबूत हुई। रोजी-रोटी के चक्कर में लोगों का अपने स्थान से पलायन प्रारंभ हुआ। इसी में स्थानीय बोली का ह्रास