महेश कटारे - छछिया भर छाछ

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छछिया भर छाछ हर नुक्कड़ पर ठट्ठे थे। गो कि अलाव उसी अनुपात में कम हो चुके थे जिस अनुपात में बैलों से खेती। खेतों में बैलों की घंटियों से टुनटुन की जगह ट्रेक्टर की भटर-भटर है। हफ्तों क्या पखवाड़ों का काम दिन रात में निपटता है। कभी शौकीन किसान जुए से ट्रांजिस्टर बाँध जुताई करते थे अब कम्पनियों ने ट्रेक्टर में ही टेप फिट कर बेचना शुरू कर दिया है। मतलब पहले की चीजों के निशान ही बाकी रह गए हैं। मनोरंजन के नए-नए साधन खेत-खलिहान तक पहुँच आदमी को भले ही अपने में बाँध रहे हों पर