संधिपत्र

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संधिपत्र----------खिड़की से आती हवा के झोंके दीवार पर टंगे कैलेंडर के पन्नों को फडफड़ा देते मानो उसे याद दिला रहे हों कि चार दिन हो गये हैं, आखिर कब तक सच्चाई को छुपा पायेगी वो। सामने पलंग पर सिमटी कृशकाया पर निगाह पड़ी तो जी भर आया।कैसी तिनके सी हो गयी है आई, कब से जूझ रही थी बीमारी से, मैं न आती तो जाने क्या होता, कैसीसिकुड़ गयी है पीली देह, तीन बोतल खून चढ़ा है, तब कही जाकर हिमोग्लोबिन कुछ बढ़ा है| चाहकर भी वह आई को मुंबई नहीं ले जा सकी, भेद जो खुल जाता सो यहीं कोल्हापुर