बेवजहा के ख़याल - 3

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कुछ भी मेरे मनमुताबिक नही होता ,किसी काम से ये सोच कर बाहर जाता हूँ कि पैदल चलने से फिट रहूँगा भले ही एटीएम से पैसे निकालने हो तो उस दिन उस एटीएम में पैसे नही होंगे यानी घर लौटो बाइक उठाओ फिर दूसरे एटीएम जाओ तब गुस्सा आता है बेवजह की दौड़ हो गईं।अच्छा मेरी आदत नही है इंतजार करने की लेकिन जब किसी का बड़ी शिद्दत से इंतजार करने लग जाता हूँ तो , वही शख्स मुझे इंतजार कराने के अलावा मुझे कुछ नही देता ,और में मायूस होकर रह जाता हूँ ,इंतजार की बेचैनियाँ समेट कर ।