टापुओं पर पिकनिक - 91

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रात के साढ़े तीन बजे थे। आर्यन मुंबई में अपने बेडरूम में बेखबर सोया हुआ था। बाक़ी स्टाफ के लोग नीचे ऑफिस के साथ वाले कमरे में थे। फ़ोन की घंटी बजी। - इस वक्त? क्या मुसीबत है! आर्यन आंखें मीचे हुए ही भुनभुनाया। घंटी फ़िर बजी। रात के सन्नाटे में स्वर और भी कर्कश सा लग रहा था। कुछ देर तक आवाज़ की अनदेखी करके आख़िर आर्यन ने मोबाइल उठा कर कान से लगाया। उधर से कुछ सहमी घबराई हुई सी आवाज़ आई- सर, माफ़ करना, इतनी रात को आपको डिस्टर्ब कर रहा हूं... पर सुबह के इंतजार तक