प्रकृति चित्रांकन की नाटकीय शैली का वैशिष्ट्य (कालिदास और भवभूति के विशेष संदर्भ में)

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मानव संवेदना सदैव से ही सौंदर्य की अभिलाषणी रही है। वह सदैव नवीन रूप व नूतन सौंदर्य का अन्वेषण करती रहती है। मानव जीवन के समस्त लक्ष्यो मैं सौंदर्य ही सर्वोपरि है। प्रकृति के कण-कण में सौंदर्य परिव्याप्त है और अनादिकाल से मानव चेतना इस सौंदर्य को आत्मसात करती रही है। वस्तुतः मानव जीवन स्वयं भी तो प्रकृति के विशाल रूप का एक अभिन्न अंग है। अतः सभ्यता और संस्कृति के प्रारंभ से ही मानव की जीवनधारा में यदि प्रकृति ने अपनी सौंदर्य सुषमा के रंग विखरे हैं तथा अपने प्रतिबिंबो को मानव ह्रदय के विविध भावों के रूप मैं