कर्मफल

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" मैं भी तो तेरी भाभी हूं! आज रात रूक जा यही!" अपनी बड़ी भाभी की बीमारी का सुनकर उनसे मिलने आई मैं उन्हें मना ना कर सकी और रुक गई।हर दम चुस्त-दुरुस्त रहने वाली और अपने इशारों पर पूरे परिवार को नचाने वाली भाभी इन 5 सालों में बिल्कुल ही ढल गई थी। उनकी आवाज में भी वो दमखम नहीं और शरीर से तो आधी ही रह गई थी । इतना बदलाव तो उनमें भैया के जाने के बाद भी नहीं आया था।रात को खाना खाते हुए उन्होंने अपनी बहु से थोड़े से चावल लाने के लिए कहा तो