आइडेंटिटी क्राईसिस - 2

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एपिसोड २. एक दिन अचानक मेरे स्टुडियो में एक फोन आया कि कोई मुझसे मिलने बाहर मेरा इंतजार कर रहा था। मैंने बाहर आकर देखा तो वह मुझे देखते हुए हाथ हिला कर मुस्कुरा रही थी। “तुम, यहाँ कैसे?” मैं अचंबित होते हुए बोला। मैंने उसे पहली बार देखा था। फोटो के मुकाबले वह थोडी मोटी लग रही थी। हमने वह भी नजरअंदाज कर दिया था। एक बार मुँबई की हवा लग गयी तो अच्छे-अच्छों का वजन कम हो जाता है। “मुझे आज ही अपना नया ऑफिस ज्वाईन करना है। मुझे ‘मुँबई-मिरर’ पत्रिका में जॉब मिल गया है। “मुझे पत्र