नवाब जूनागढ़ का ऐसा होता था पर्यटन

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नीलम कुलश्रेष्ठ सांझ होते ही झाड़-फानूस में शमाएं जलकर मुस्कराने लगती हैं, सारा महल जगमगा उठता है । नवाब अपने सामने रखे सोने से मढ़े हुक्के को गुड़गुड़ाते हुए हाथ का इशारा करते हैं । उनके इस इशारे पर रक्कासा के शरीर में जैसे बिजली तड़प उठी हो । वह अपनी अदाओं की तमाम शोखी उंड़ेलती तबलों की थाप, हारमोनियम की स्वरलहरी पर थिरक उठती है । इधर उसके पैरों की चपलता बढ़ती जाती है, उधर नवाब साकी के हाथ से जाम पर जाम अपने होठों से अंदर छलकाते जा रहे हैं । जैसे-जैसे रात गहरा रही है वैसे-वैसे उनकी