नारी पात्र काव्य की प्राण वाहिनी धारा है, जिसमें जीवन का मर्मस्पर्शी मधुर रस लहलहाता रहता है। वस्तुतः नारी ही सुख का मूल, त्रिभुवन का आधार और त्रेलोक्य रूपा के रूप में भी शैवागमों में प्रशंसित रही है। आचार्य भरत ने भी नारी को सुख का मूल तथा काम भाव का आलंबन माना है । परंतु आचार्य भरत ने नारी सौंदर्य में उसके अंग सौंदर्य के साथ ही शील सौजन्य, आचरण की पवित्रता तथा जीवन की प्रकृति और अवस्था को विशेष महत्व दिया है। नारी की जीवन प्रकृति के अनुरूप ही आचार्य भरत ने उन 20 अलंका प्रेक्षण रों दक्षिणा