प्यार के इन्द्रधुनष - 13

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- 13 - दिन का चौथा पहर समाप्ति की कगार पर था। अपने-अपने घोंसलों में लौटते हुए परिंदों की डार की डार आकाश में दिखाई दे रही थी। शाम ढलने लगी थी जब मनमोहन घर पहुँचा। रेनु ने उससे पूछा - ‘आपके लिए चाय बनाऊँ?’ ‘तूने पी ली या पीनी है?’ ‘मैं तो आपका इंतज़ार कर रही थी।’ ‘फिर यूँ क्यों पूछा कि आपके लिए चाय बनाऊँ।’ ‘आप भी ना शब्दों की बाल की खाल निकालने लगते हो! अब जल्दी से ‘हाँ’ या ‘ना’ कहो।’ चाहे मनमोहन डॉ. वर्मा के यहाँ से चाय पीकर आया था, फिर भी रेनु की