भवभूति का शास्त्र पांडित्य

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भारतवर्ष में संस्कृत नाटय परंपरा के अग्रणी एवं प्रतिभाशाली नाटककार महाकवि भवभूति की नाट्य कृतियों का अनुशीलन करने पर नाट्यशास्त्र का एक अनूठा पांडित्य दृष्टिगोचर होता है। भवभूति के वंशजों में उनके पूर्व की 5 पीढ़ियां अपने पांडित्य कौशल के लिए विख्यात रही। अतः वंशक्रमानुगत रुप से यह शास्त्र पांडित्य भवभूति की कृतियों में सहज रूप से परिलक्षित होता है।काव्य के दो भेद हैं श्रव्य काव्य एवं दृश्य काव्य। दृश्य काव्य नेत्र का विषय है तथा रूप से आरोपित होने के कारण रूपक कहा गया है। दृश्य श्रव्यत्व भेदेन पुनः काव्यम द्विधा मतम् ।दृश्यम तत्राभिंनेयम् तद रूप आरोपात्तु रूपकम्।। साहित्य दर्पण