उत्तररामचरितम् मे सीता के शक्ति रूप एवं गृहस्थ सांसारिक रूप का विवेचन

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हर युग का ज्ञान कला देती रहती है।हर युग की शोभा संस्कृति लेती रहती है।इन दोनों से भूषित वेशित और मंडित।हर युग की नारी एक दिव्य कथा कहती है।सृष्टि की सृजनकर्त्री नारी की ऐसी ही दिव्य कथारओं से भारतीय संस्कृति के अनेकों ग्रंथ सुशोभित हैं। नारी पात्र सदैव ही काव्य के प्रेरणा स्रोत रहे हैं। वस्तुतः नारी पात्र काव्य की वह प्राण वाहिनी धारा है जिसमें जीवन का मर्मस्पर्शी मधुर रस लहलहाता रहता है।आचार्य भवभू अविश्वास व आक्रोश के ति के सुप्रसिद्ध ग्रंथ उत्तररामचरितम् मभी सीता को जहां एक और शक्ति स्वरूपा मानकर स्तुति की गई है वहीं दूसरी ओर