अतीत के पन्ने - भाग ४

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आज हमेशा के लिए मैंने ही तुझे विदा किया और अब आगे।।फिर सब गंगा में स्नान करने के बाद सब हवेली आ गए।काव्या तो खुद को सम्हाल नहीं पा रही थी। कुछ देर बाद सरिता अपने पति के साथ आ गई।और दो दिन बाद राधा भी आ गई थी।सब एक साथ बैठक में बैठ कर मां की श्राद्ध की तिथि देख रहे थे। पंडित जी बोले काव्या तूने ही सब किया है तो काम भी कर देना। काव्या ने सर हिला दिया और वो पत्थर जैसी बनी रही।नन्हा सा आलेख उसके आगे पीछे घूम रहा था और अपने तुतलाहट से