स्त्री.... - (भाग-31)

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स्त्री.......(भाग-31) वो शाम बहुत सुंदर बीती, सोमेश जी मुझे छोड़ कर जल्दी मिलते हैं का वादा करके वापिस चले गए, कह रहे थे कि अब शायद सीधा अपनी डयूटी पर जाऊँगा।आरती अपने काम में लगी हुई थी और सब कारीगर अपने काम में.......हमेशा रेडियों धीमी आवाज़ में बजता रहता है।कारीगर अपने अपने परिवारों की बातें भी एक दूसरे से करते रहते हैं और कई बार मैं भी उनकी बातों में शामिल हो जाती हूँ, अब तो ये मुझे अपना परिवार लगने लगा है....गुडडु भैया, अनवर चाचा, हाजी बाबा, सरोज दीदी, छोटू, मालती मौसी वगैरह वगैरह......पर काम के वक्त मैडम हूँ सबकी.......इस