कोट - १४

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कोट-१४ चश्मेवाला उत्तरांचल के बर्फीले स्थानों से लौटा है। उसे मैं वहाँ के हरेला त्यौहार( हर्याव) के बारे में बताता हूँ, साथ में बच्चे भी सुनते हैं। बच्चों को पता नहीं है जो मेरे साथ बैठा है, वह चश्मेवाला है। मैं आरम्भ करता हूँ- "जी रया, जागि रया, यो दिन यो मास भेटनै रया। (जीते रहना, जीवन्त/ जागते रहना,यह दिन ,यह महिना भेटते रहना) ----- गंग ज्यु पाणि तक अमर रैया।" संक्षिप्त में कहा जाता है- "जी रया, जागि रया,  गंग ज्यु पाणि तक अमर रैया।( जीते रहना, जीवन्त/ जागते रहना,  गंगा जी के जल तक अमर रहना)।" बचपन में