इसको भी चाँद छूने दो

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चुटपुटी आज चली गई। किसी ने उसे रोकने का प्रयत्न भी नहीं किया। अपने स्वार्थ के लिए उसके अबोध मन को झूठे वायदों और आश्वासनों की चाशनी में हमने लपेटा, अपने सुख और आराम के लिए अपनी, चिकनी चुपड़ी बातों में उसे हमने उलझाकर रखा, उसके पिता के पितृत्व और अधिकार को बौना करके उसका ताकतवर और इस्पाती संरक्षक बनने का दावा हमने किया। काश। हमने ऐसा न किया होता और उसके नसीब का सही ख़ाका खींचकर उसके सामने रखकर उसे उसके जीवन के इस सच का सामना करने की ताकत दी होती कि हम कभी उसके सगे और हितैषी