यही है जिंदगी

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इस बार मायके से लौटने के पश्चात वो ऊर्जा,वह खुशी महसूस नहीं हो रही थी, जो अबतक होती आई थी।चार दिन लौटे हुए हो गए थे, बैग से सामान तक निकालने की इच्छा नहीं हो रही थी।जरूरी काम निबटाकर मैं अनमनी सी सभी बातों का विश्लेषण कर रही थी। बातें तो वही छोटी-छोटी थीं, लेकिन किस तरह समय एवं परिस्थितियों के अनुसार स्वभाव तथा विचारों में बदलाव आता है,फिर वे महत्वहीन बातें भी मन को चुभ जाती हैं, जिन्हें आसानी से अनदेखा किया जा सकता है।एक घर में एक माहौल में पले -बढ़े भाई-बहनों के स्वभाव में भी अत्यधिक भिन्नता