बंद खिड़कियाँ - 9

  • 2.9k
  • 1.4k

अध्याय 9 मन में उबलता हुआ गुस्सा चावल को फटकारते समय हाथों की उंगलियों के किनारों में कंपन हुआ। मन के अंदर "ओ" ऐसा एक अहंकार आवाज देने लगी। थोड़ी दूर पर बैठकर चौपड़ खेल रही लक्ष्मी मुझे ही देख रही थी यह महसूस होते ही उसने अपने को संभाला। लक्ष्मी की शादी होकर वह पोंगल के लिए पीहर आई हुई थी। घर में बड़ा भाई और नई भाभी ने जो तूफान और अन्याय खड़ा किया हुआ था | उसे और लोगों के साथ वह भी प्रेम से देख रही थी । किसी एक को भी मुझ पर हमदर्दी नहीं