बंद खिड़कियाँ - 16

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अध्याय 16 उस दिन मन कैसे पंख लगाकर उड़ रहा था? किस कारण से उड़ रहा था? इन प्रश्नों को कई बार अपने अंदर वह पूछती और भ्रमित होडर जाती। उसको जवाब नहीं मिला। उसका दिल धड़कने लगा। कपकपी सी लगी... नए संचारों के लिए निडर होकर खड़े हुए जैसे। इस बात से ही उसे डर सा लगा। परंतु उस डर के बीच उसका निडर होकर उस पूरी रात दिनकर के साथ अकेले बैठकर उसकी बातें उसके हंसी मजाक की सुंदर यादें आकर एक सुख की अनुभूति प्रदान करती है। सब तरह से निशब्दताथी उस रात। पत्ते और पक्षी अपनी