बंद खिड़कियाँ - 17

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अध्याय 17 "हेलो दादी !" बड़े आराम से अपनी पुरानी यादों से अपने को अलग कर सरोजिनी ने मुड़ कर देखा । अरुणा आज लाल रंग की साड़ी पहने बहुत अच्छी लग रही थी। "आओ !" सरोजिनी मुस्कुराते हुए बोली। "लाल रंग तुझ पर बहुत खिल रहा है बेटी!" "थैंक्यू दादी" हंसते हुए अरुणा उसके पास आई। आज शाम को आप फ्री हैं ना ?" सरोजिनी मुस्कुराई। "क्या प्रश्न है? सारे दिन ही मैं बेकार ही तो पड़ी हुई हूं?" "फिर भी पूछ रही हूं। शाम को बाहर चलेंगे आ रही हो क्या ?" "आती हूं ! कहां?" "लालबाग। आज