बंद खिड़कियाँ - 23

  • 2.6k
  • 1.2k

अध्याय 23 आंगन में हल्के धूप में बैठकर चावल को फटकारते हुए सरोजिनी के हाथ बीच में हल्का सा स्तंभित होकर रुक जाता। कान तीव्र होकर अंदर कमरे में जंबूलिंगम और रत्नम के बीच में जो गरम वाद-विवाद हो रहे उसी में रमा। उसके सामने थोड़ी दूर पर बैठी मरगथम ने उसे एक बार देख अपने अंदर बड़बड़ा रही जैसे बोली। "छोटी अम्मा की जबान बहुत ज्यादा चलती है।" सरोजिनी बिना जवाब दिए चावल को साफ करती हुई नीचे झुक कर रही थी। "हमारी जाति में इस तरह बोलें तो आदमी लोग सिर ही काट देंगे!" सरोजिनी बिना मुंह खोले