अग्निजा - 10

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प्रकरण 10 सुबह से ही शांति बहन और रणछोड़ दास आपस में कुछ फुसफुसा रहे थे। रविवार को सुबह चाय जरा देर में बनती थी। जैसे ही यशोदा चाय लेकर आई, वैसे ही दोनों एकदम चुप हो गए। रणछोड़ दास ने कठोर आवाज में पूछा, “चाय देने आई हो, या बातें सुनने?” यशोदा वहां से चुपचाप निकल गई। नाश्ते के थेपले लेकर केतकी को भेजा तो शांति बहन ने उसके हाथों से प्लेट छीन ली। रणछोड़ दास ने उसका हाथ खींचा, “जिस समय मैं घर में रहूं मेरे सामने आना नहीं। कितनी बार तुझे बताया है, चल निकल यहां से।