बाबूजी की जमीन

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’’हमारे पास जमीन क्यों नहीं है?’’ बाबूजी की जमीन की बात पहली बार मैंने अपने सातवें वर्ष में उठाई थी जब मेरे जमींदार ताऊ हमारे घर पर बासमती, मूँग और उड़द की तीन बोरियाँ पहली बार लाए थे, ’मेरी जमीन की सौगात है.....’ मेरे दादा की मृत्यु उस समय हाल ही में हुई थी जो अभी तक हमारे लिए अनाज और दालें लाते रह थे, ’तुम्हारी जमीन की हैं.....’ ’’क्योंकि हमारे पास अपनी प्रिंटिंग प्रेस है।’’ एक थपकी के साथ बाबूजी ने मुझे अपने कंधे पर उठा लिया था। उस समय उनके कंधे खूब चौड़े थे और काठी भी खासी