बेमेल - 16

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...“अरे रहने दो बेटा....ये चापाकल के चोंचले! एक तो इतनी दूर तक पानी भरने आओ और ऊपर से चापाकल चलाओ! अब इतनी मेहनत कौन करता है भला? और मरना-जीना तो सब भगवान के हाथ में है! जिसे इस दुनिया से जाना है वो किसी न किसी भांति चला ही जाएगा! जाने वाले को कौन रोक पाया है भला! ऐसा जान पड़ता है कि उन डॉक्टरों ने तुम्हे भी उल्टी- पुल्टी पट्टी पढ़ाई है! मैं तो कहती हूँ, कामचोर हैं वे मेडिकल कैम्प वाले! केवल मुफ्त की रोटियां तोड़ना उनकी आदत लगती है! तभी तो अपना काम हम गांववालों को सौंपना