इश्क़ ए बिस्मिल - 8

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तुम्हारे साथ की ज़रूरत है,लम्हों की रानाईयां अकेले समेटी नहीं जाती,चलो माना हूं मैं ख़ुदग़र्ज़ ही सही,ज़िंदगी की कठिनाईयां अब अकेले झेली नहीं जाती।।नेहा के जाने के बाद वह थोड़ा नार्मल फ़ील कर रही थी। दिमाग़ में मची खलबली थोड़ी शांत हुई थी। उसने नसरीन(मैड) से कह दिया था के वह अपने कमरे में है और उसे कोई डिस्टर्ब ना करें जबहि चाहने के बावजूद अरीज उसके कमरे में नहीं आई थी। लेकिन जब डिनर के लिए भी वह नीचे नहीं आई तो अरीज उसका खाना लेकर उसके कमरे में आ गई।वह आंखें बंद करके लेटी हुई थी। अरीज बिना