बेमेल - 23

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......इधर श्यामा का गर्भ अब सात मास का हो चुका था। अपना बढ़ा हुआ पेट लिए वह रोगियों की सेवा में जी-जान से जुटी रहती। पर गांव में फैलती महामारी और गांववालों के समक्ष भूख की समस्या देख उसका सब्र का बांध अब टूटने लगा था। “श्यामा काकी, रौशन लाल की तबीयत दिन ब दिन बिगड़ती जा रही है। फिर घर में अनाज भी खत्म होने को आए हैं। कुछ समझ में नहीं आ रहा, कहाँ जाऊं, किससे मदद की गुहार लगाऊं !” – रौशनलाल की बीवी कमला ने भयभीत होकर पुछा। जहाँ एक तरफ उसका पति हर दिन मौत