तमाचा - 14 (मुकाम)

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दूर-दूर तक बिछी रेत की चादर और उनके बीच कहीं-कहीं उगे खींप के पौधे ऐसे लग रहे थे, जैसे चादर के बीच कोई कढ़ाई का कार्य किया गया हो। उन धोरो के बीच गिरे हुए चिप्स और खाली बोतलों के पैकेट उन निर्जन रेगिस्तान में मानव की उपस्थिति को प्रमाणित कर रहे थे। सूर्य की किरणें रेत पर पड़कर उसकी चमक को बढ़ा रही थी। पर इस चमक ने भी सिर झुका लिया जब बिंदु ने अपने कोमल पाँव उन मखमली धोरो पर रखे। पहली बार घूमने आई बिंदु का उत्साह उसके रूप लावण्य को और आकर्षित कर रहा था।