अग्निजा - 77

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प्रकरण-77 कुछ देर बाद थोड़ी शांत होने के बाद केतकीने भावना की तरफ देखा। अपने दोनों हाथ उसके गालों पर रखकर याचना के स्वरों में कहा, “भावना, मुजे अकेला मत छोड़ना...हमेशा मेरे साथ रहना वरना शायद मैं...” केतकी बहन ऐसे खराब विचार अपने दिमाग से निकाल डालो। मैं सांस लेना छोड़ सकती हूं, अपनी जान छोड़ सकती हूं, पर तुमको कैसे छोड़ सकती हूं भला ? “मुझे कुछ भी हो जाये, तो भी नहीं छोड़ोगी न?” “अरे होना क्या है तुमको? और यदि कुछ हो भी जाये तो तुम मेरी बड़ी बहन हो, यह सच तो रहने वाला ही है