नमो अरिहंता - भाग 4

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(4) क्षेपक ** बरसात हालाँकि 8-10 दिन पहले थमी थी, पर इतने ही दिनों में धरती का पानी सूख गया था और सब ओर हरियाली की चादर बिछ गई थी। किंतु डैम से गिरता पानी अब भी उत्पात मचाये था। उसका भयानक शब्द आज भी वहाँ से गुजरने पर पूर्ववत् सुनाई पड़ता। कि रात के वक्त वह शब्द सन्नाटा तोड़कर बस्ती में घुस आता और पेशाब आदि के लिये आँख खुलने पर अनवरत् सुनाई पड़ता रहता। जबकि नदी अब पहले की भाँति तनी-तनी न थी, बल्कि लहराकर बह उठी थी। गलियाँ और मैदान सूख जाने से और छतों का टपकना