अग्निजा - 137

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लेखक: प्रफुल शाह प्रकरण-137 ‘क्या? वाकई तुम्हें ऐसा लगता है?’ ‘नहीं, मुझे केवल ऐसा लगता ही नहीं है तो वास्तव में वैसा है भी। इसी लिए तुम निश्चिंत होकर घूमती-फिरती नहीं हो। कभी-कभी कहीं खो जाती हो...तुम अपनी वेदनाओं को किसी के साथ बांटो। तुम्हारी वेदनाओं में कोई सहभागी नहीं हो सकता, ये सच है फिर भी अपने मन की बातें कहने के बाद तुम्हारा जी हल्का हो जाएगा। मैडम उपाध्याय उम्र में काफी बड़ी हैं, और भावना बहुत छोटी, इस लिए शायद इन दोनों से तुम अपने मन की बात न कह पाओ, लेकिन मुझ पर विश्वास रखो, तुमने