परतें

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“परतें”फोन की घंटी बजी। मां का फोन था। “हैलो मां, प्रणाम” लेकिन मां के आशीर्वाद में ही उनका सारा दर्द छलक गया।“क्या हुआ?” जिया चिन्तित हो गई।“गिर गई, कमर में दर्द हो रहा है”“हां, वो तो तुमने कल शाम को बताया था”“आज दोबारा गिर गई”“लेकिन तुमसे कल कहा था न कि रेस्ट करो...बिना बात ज्यादा इधर-उधर मत चलो” जिया को गुस्से का उबाल व चिन्ता एक साथ हो रही थी। मां चुप हो गई। शायद कई बातें ऐसी होती हैं, जिनका उत्तर शब्दों में नहीं दिया जा सकता। दोनों तरफ सन्नाटा सा पसर गया। लेकिन मां व जिया के विचारों