कुहासा छँट गया

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कुहासा छँट गया सुनो ! पाँच बज गए ,अब तो चाय बना लो ।कब से इंतज़ार कर रहा हूँ और एक तुम हो कि .... तिवारी जी के स्वर की तल्ख़ी उभर कर बाहर आ गयी। रमा ने पलट कर तिवारी जी को आग्नेय दृष्टि से देखा और खीज कर बोली ,हाँ हाँ ,मुझे तो बहुत शौक़ है तुम्हें परेशान करने का ,चाय -खाना कुछ भी समय पर ना देने का ।ऐसा करो ,नीचे जाओ ! ख़ुद बना लो या अपनी लाड़ली बहू रानी से कहो बनाकर देगी गरमा गरम चाय अपने सुकोमल हाथों से । अरे !तुम तो नाराज़