साथिया - 47

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"क्या करूं निशु को बोलूं कि मुझे रिश्ता मंजूर नहीं है। नहीं नहीं बात और बिगड़ जाएगी और वैसे भी वह शुरू से ही गंवार है। कम बुद्धि बैल है । मैं उसे कुछ भी नहीं कह सकती अब मुझे जो कुछ करना है वह चुपचाप ही करना होगा।" नेहा ने खुद से कहा। "पर मैं करूं भी तो क्या करूं कैसे करूं? कुछ तो मुझे करना होगा।" नेहा का दिमाग इस समय बहुत तेज चल रहा था। वैसे भी वह बहुत शार्प माइंडेड थी और सबसे बड़ी बात विद्रोही थी। उसे नहीं स्वीकार थी यह रीति रिवाज और परिवार