तिष्यरक्षिता

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पूर्णिमा की रात थी ,जंगल के बीचों बीच एक झरने के सामने एक लड़का खड़ा था , वो लगभग छः फुट तीन इंच का रहा होगा ;उसके बाल उसके चेहरे पे आ रहे थे ,वो ज़ोर ज़ोर से सांस ले रहा था ;उसके चौड़े कंधे उसकी सुंदरता बढ़ा रहे थे उसने काले रंग के वस्त्र पहन रखे थे; उसने हाथ में कोई रत्न पकड़ रखा था ,उसको देख के लग रहा था की वो किसी कार्य को करने की बहुत कोशिश कर रहा हो परंतु वो कार्य पूरा न कर पा रहा हो , तभी अचानक से वो दौड़ते हुए