कंचन मृग - 4. माई साउन आए

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4. माई साउन आए- बारहवीं शती का उत्तरार्द्ध। महोत्सव वास्तव में उत्सवों का नगर था। नर-नारी उल्लासमय वातावरण का सृजन करने में संलग्न रहते। ऋतुओं के परिवर्तन के साथ ही नगर का परिवेश बदल जाता । सावन में घर-घर झूले पड़ जाते। नीम या इमली की डाल पर बड़े-बड़े रस्से लगाकर लकड़ी के मोटे पटरे बाँध दिये जाते। नवयुवतियाँ साँझ ढलते ही झूलों पर झूलतीं और कोमल कंठों से सावन गातीं। उन गीतों को सुनकर हर व्यक्ति जीवन की कटुता भूल जाता। अभावों और आकांक्षाओ की अनापूर्ति के मध्य भी जीवन की सरसता छलक उठती। रस बरसने लगता। चन्द्रा के