आदर्श और मजबूरियाँ,भाग-2

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बेशक मेरे एक भी आदर्श न हों लेकिन मेरी कोई तो मजबूरी होंनी ही चाहिये नही भी हुये तो इस मजबूरी नामक झूठे शब्द को रोजाना सौ बार बोलूंगा और अपने इस नादान हृदय को समझाऊँगा कि तुम तो मजबूर हो, तुम्हारा कुछ नहीं हो सकता. ऐ मन,तू धीरज धर! पृथ्वी पर जब-जब पाप बढ़ता है, धर्म की हानि होती है तब तब पापियों के उद्धार करने स्वयं ही प्रभु आते हैं. इसलिये निश्चिंत रहो और मौन रहकर इतने पाप वृद्घि होने तक इंतजार तो कर लो.