अलंकार

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उन दिनों नील नदी के तट पर बहुतसे तपस्वी रहा करते थे। दोनों ही किनारों पर कितनी ही झोंपड़ियां थोड़ीथोड़ी दूर पर बनी हुई थीं। तपस्वी लोग इन्हीं में एकान्तवास करते थे और जरूरत पड़ने पर एकदूसरे की सहायता करते थे। इन्हीं झोंपड़ियों के बीच में जहांतहां गिरजे बने हुए थे। परायः सभी गिरजाघरों पर सलीब का आकार दिखाई देता था। धमोर्त्सवों पर साधुसन्त दूरदूर से वहां आ जाते थे। नदी के किनारे जहांतहां मठ भी थे। जहां तपस्वी लोग अकेले छोटीछोटी गुफाओं में सिद्धि पराप्त करने का यत्न करते थे।

Full Novel

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अलंकार अध्याय 1

उन दिनों नील नदी के तट पर बहुतसे तपस्वी रहा करते थे। दोनों ही किनारों पर कितनी ही झोंपड़ियां दूर पर बनी हुई थीं। तपस्वी लोग इन्हीं में एकान्तवास करते थे और जरूरत पड़ने पर एकदूसरे की सहायता करते थे। इन्हीं झोंपड़ियों के बीच में जहांतहां गिरजे बने हुए थे। परायः सभी गिरजाघरों पर सलीब का आकार दिखाई देता था। धमोर्त्सवों पर साधुसन्त दूरदूर से वहां आ जाते थे। नदी के किनारे जहांतहां मठ भी थे। जहां तपस्वी लोग अकेले छोटीछोटी गुफाओं में सिद्धि पराप्त करने का यत्न करते थे। ...Read More

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अलंकार अध्याय 2

थायस ने स्वाधीन, लेकिन निर्धन और मूर्तिपूजक मातापिता के घर जन्म लिया था। जब वह बहुत छोटीसी लड़की थी उसका बाप एक सराय का भटियारा था। उस सराय में परायः मल्लाह बहुत आते थे। बाल्यकाल की अशृंखल, किन्तु सजीव स्मृतियां उसके मन में अब भी संचित थीं। उसे अपने बाप की याद आती थी जो पैर पर पैर रखे अंगीठी के सामने बैठा रहता था। लम्बा, भारीभरकम, शान्त परकृति का मनुष्य था, उन फिर ऊनों की भांति जिनकी कीर्ति सड़क के नुक्कड़ों पर भाटों के मुख से नित्य अमर होती रहती थी। ...Read More

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अलंकार अध्याय 3

जब थायस ने पापनाशी के साथ भोजशाला में पदार्पण किया तो मेहमान लोग पहले ही से आ चुके थे। गद्देदार कुरसियों पर तकिया लगाये, एक अर्द्धचन्द्राकार मेज के सामने बैठे हुए थे। मेज पर सोनेचांदी के बरतन जगमगा रहे थे। मेज के बीच में एक चांदी का थाल था जिसके चारों पायों की जगह चार परियां बनी हुई थीं जो कराबों में से एक परकार का सिरका उंड़ेलउंड़ेलकर तली हुई मछलियों को उनमें तैरा रही थीं। थायस के अन्दर कदम रखते ही मेहमानों ने उच्चस्वर से उसकी अभ्यर्थना की। ...Read More

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अलंकार अध्याय 4

नगर में सूर्य का परकाश फैल चुका था। गलियां अभी खाली पड़ी हुई थीं। गली के दोनों तरफ सिकन्दर कबर तक भवनों के ऊंचेऊंचे सतून दिखाई देते थे। गली के संगीन फर्श पर जहांतहां टूटे हुए हार और बुझी मशालों के टुकड़े पड़े हुए थे। समुद्र की तरफ से हवा के ताजे झोंके आ रहे थे। पापनाशी ने घृणा से अपने भड़कीले वस्त्र उतार फेंके और उसके टुकड़ेटुकड़े करके पैरों तले कुचल दिया। ...Read More

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अलंकार अध्याय 5

पापनाशी ने एक नौका पर बैठकर, जो सिरापियन के धमार्श्रम के लिए खाद्यपदार्थ लिये जा रही थी, अपनी यात्रा की और निज स्थान को लौट आया। जब वह किश्ती पर से उतरा तो उसके शिष्य उसका स्वागत करने के लिए नदी तट पर आ पहुंचे और खुशियां मनाने लगे। किसी ने आकाश की ओर हाथ उठाये, किसी ने धरती पर सिर झुकाकर गुरु के चरणों को स्पर्श किया। उन्हें पहले ही से अपनी गुरु के कृतकार्य होने का आत्मज्ञान हो गया था। ...Read More