इक्क ट्का तेरी चाकरी वे माहिया...

(4)
  • 15.9k
  • 6
  • 5.5k

इक्क ट्का तेरी चाकरी वे माहिया... जयश्री रॉय (1) पेड़ के घने झुरमुटों के बीच से अचानक आसमान का वह टुकड़ा किसी जादू की तश्तरी की तरह झप से निकला था- चमचमाता नीला, चाँद-तारों से भरा हुआ! चारों तरफ यकायक उजाला फैल गया था। कश्मीरा आंख चौड़ी कर देखता रहा था, घुप्प अंधेरे की अभ्यस्त आँखें चौधिया गई थीं। जाने कितने दिन हो गए थे रोशनी देखे! स्याही के अंतहीन ताल में ऊभ-चुभ रहे थे सबके सब। रोशनी बस जुगनू की तरह यहाँ-वहाँ तिमकती हुई। घुटने में चोट लगी है। लंगड़ा कर चलता है वह। उसके रह-रह कर कसक उठते

Full Novel

1

इक्क ट्का तेरी चाकरी वे माहिया... - 1

इक्क ट्का तेरी चाकरी वे माहिया... जयश्री रॉय (1) पेड़ के घने झुरमुटों के बीच से अचानक आसमान का टुकड़ा किसी जादू की तश्तरी की तरह झप से निकला था- चमचमाता नीला, चाँद-तारों से भरा हुआ! चारों तरफ यकायक उजाला फैल गया था। कश्मीरा आंख चौड़ी कर देखता रहा था, घुप्प अंधेरे की अभ्यस्त आँखें चौधिया गई थीं। जाने कितने दिन हो गए थे रोशनी देखे! स्याही के अंतहीन ताल में ऊभ-चुभ रहे थे सबके सब। रोशनी बस जुगनू की तरह यहाँ-वहाँ तिमकती हुई। घुटने में चोट लगी है। लंगड़ा कर चलता है वह। उसके रह-रह कर कसक उठते ...Read More

2

इक्क ट्का तेरी चाकरी वे माहिया... - 2

इक्क ट्का तेरी चाकरी वे माहिया... जयश्री रॉय (2) इन्हीं यात्राओं के दौरान भूख और ऊब से जन्मी ऊंघ टूटती-जुड़ती नींद के बीच कश्मीरा बार-बार अपने गाँव, रिश्तों की सुरक्षा और जमीन की ओर लौटता, सबका वही बुद्धू, नाकारा सिरा बन कर... लोहड़ी के कितने दिन पहले से उनका मुहल्ला-मुहल्ला फेरा शुरू होता था! तब सिबों उससे गज भर लंबी हुआ करती थी। इसलिए खूब रौब भी गाँठती थी। लंबी और सिंक जैसी पतली। गले की डंठल पर हांडी जैसा सर, मोटी-मोटी काजल लिसरी आँखें! मैदे-सा सफ़ेद रंग! आगे-आगे नाक सिनकती शुतुरमुर्ग-सी चलती थी। जैसे कहाँ की महारानी। बात-बात ...Read More

3

इक्क ट्का तेरी चाकरी वे माहिया... - 3

इक्क ट्का तेरी चाकरी वे माहिया... जयश्री रॉय (3) पुराने खंडहरों में बिखरे खाली बोतलों, सीरिंज के बीच लड़के से बेखबर अपनी सुई से छलनी बाहें लिए पड़े रहते। जोगियों-अघोरियों का डेरा लगता उनका आस्ताना। उनकी पीली, चढ़ी हुई आँखों में तितलियों के उड़ते जत्थे होते, नीले-गुलाबी बादल होते। पीठ बन गए पेट में मरी हुई भूख और दुबली बाँहों की रस्सी-सी ऐठी नसों में जहर की नीली नदी! गलियों में चलते-फिरते लाश की तरह लगते जवान लड़के। गड्ढे में धँसी आँखों में बस सन्नाटा और खोयापन होता। वे पूरी दुनिया से कट कर जाने किस दुनिया में जा ...Read More

4

इक्क ट्का तेरी चाकरी वे माहिया... - 4 - अंतिम भाग

इक्क ट्का तेरी चाकरी वे माहिया... जयश्री रॉय (4) उसे उस गैर मुल्क में इस हालत में छोड़ कर हुये उन सब का दिल भर आया था। आते हुये बंदूक उन्हें जाने किन नजरों से देख रहा था। बुदबुदा कर किसी तरह कहा था- यारो! मैंनू छोड कर जांदे हो! वेख लईं, मैं नी बचणा!कश्मीरा ने किसी तरह डरते हुये एजेन्टों से पूछा था- इसे कुछ हो गया तो? एक एजेंट ने लापरवाही से कहा था, मर गया तो किसी खाई में लाश फेंक देंगे। कभी किसी को नहीं मिलेगी। बच गया तो दूसरे दल के साथ आ जाएगा। ...Read More