Tarkeshwer Kumar Books | Novel | Stories download free pdf

उल्टे पैर - 5

by Tarkeshwer Kumar
  • 4.1k

मशाल धीरे धीरे बुझती जा रही थी और वो शख्स नींद के अघोष में धीरे धीरे को रहा था। ...

उल्टे पैर - 4

by Tarkeshwer Kumar
  • 8.6k

कटे हुए सर से लदे पेड़ से जैसे ही थोड़ी आगे जाते हैं तो वहां।एक नदी मिलती हैं जिसमे ...

उल्टे पैर - 3

by Tarkeshwer Kumar
  • 7.7k

गोलू बेहोश होकर अपने कमरे में गिर पड़ा था।यहां नाना जी ने पाया की तारक के पीठ पर चुड़ैल ...

उल्टे पैर - 2

by Tarkeshwer Kumar
  • 12k

तारक खिड़की पर देखता हैं की गोलू डरी हुई निगाहों से लगातार तारक के पीछे देख रहा था। डर ...

उल्टे पैर - 1

by Tarkeshwer Kumar
  • (4.6/5)
  • 15.2k

यह कहानी मेरी कल्पना हैं और काल्पनिक हैं पूरी तरह से। इसका किसी सच्चाई से कोई वास्ता नहीं।बचपन में ...

हां भगवान, मैं डरता हूं।

by Tarkeshwer Kumar
  • 4.7k

डर क्या हैं?सही मायने में कहूं तो हर बार, डर का दायरा इंसान खुद पैदा नहीं करता हैं। हालात, ...

सच्ची दोस्ती?

by Tarkeshwer Kumar
  • 4.4k

आप कितने भी बड़े हो जाइए आप के अंदर बचपना जिंदा रहना चाहिए या यूं कहिए जिंदा रहता हैं ...

स्कूल के वो दिन ही अच्छे थे

by Tarkeshwer Kumar
  • 4.7k

प्रिय दोस्तो, जिंदगी बहुत तेज़ी से अपने मुक़ाम की और दौड़ रहीं हैं। इस छोटी सी जिंदगी में अनेकों ...

उस बुजुर्ग की दीवाली

by Tarkeshwer Kumar
  • (4.9/5)
  • 4.9k

जिंदगी की सबसे बड़ी सच्चाई हैं मृत्यु, पर उससे भी कटु सत्य हैं वृद्धावस्था। एक कविता के माध्यम से ...

माँ मैं तेरा कर्ज़दार हूँ

by Tarkeshwer Kumar
  • 8.6k

माँ, ये जो शब्द हैं ये अपने आप में ही पूरा संसार हैं,मानो इस शब्द के उच्चारण मात्र से ...