The River thinks that the Mountain\'s life is more comfortable and peaceful than hers. Is it true? नदी और पहाड़ एक दिन नदी के मन में ख्याल आया, \"क्या मेरे जीवन में बस बहते ही रहना है, कभी आराम करने के लिए घडी दो घड़ी ठहर भी नहीं सकती भला?\" उसने पहाड़ को पुकारा और अपने मन की ये बात उसके सामने रखी। पहाड़ खिलखिला उठा और बोला, \"अरे पगली, मुझे देख, मैं भी तो एक ही जगह पर सदियों से खड़ा हूँ।\" इस पर नदी बोली, \"तुम तो स्थिर हो, एक ही जगह पर खड़े-खड़े क्या थकान? मुझे देखो बस लगातार बहते ही रहना है, दम भर की भी फ़ुरसत नहीं मिलती...\" इस पर पहाड़ मुस्कुराया, \"यह तुम सोचती हो, मैं तो यहाँ खड़े-खड़े थक गया हूँ, रोजाना बस वही पेड़, वही आसमान नज़र आता है, कई बार जी में आता है की काश! अगर मैं भी चल-फिर सकता, भाग सकता, तो तुम्हारी तरह नित नये जंगलों, पेड़ों, गाँवों की सैर करता, प्यासे खेतों को पानी पिलाता, मनुष्यों को जीवन देकर उनकी आँख का तारा बनता...\" नदी बीच में ही बोल उठी, \"कमाल है भाई, कितने आराम में हो तुम फिर भी ऐसा सोचते हो।\" इस पर पहाड़ ने बड़ी नम्रता से कहा, \"नहीं बहन, तुम्हारी तो पूजा की जानी चाहिए। तुम दूसरों के लिए बहती हो, सब को इतना कुछ देकर भी जो तुम्हारे पास बचता है, वह सब भी तुम सागर को अर्पित कर देती हो।\" यह सुनकर नदी ने पहाड़ के पाँव छुए और दुगुने जोश में भर कर बोली, \"एकदम ठीक कह रहे हो भाई, मेरे जीवन का सच्चा लक्ष्य है दूसरों को जीवन प्रदान करना। \"धन्यवाद, बहुत-बहुत धन्यवाद!\" यह कह कर, कल कल की आवाज़ के साथ नदी अब चौगुने वेग से बह निकली। नदी के जोश को देखकर स्थिर खड़ा पहाड़ भी मन्द-मन्द मुस्कुरा उठा। Story: BookBox Illustrations: Kallol Majumder Music: Arnab B. Chowdhury Narration: Bhasker Mehta & Sweta Sravankumar (BookBox) Animation: BookBox
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