रूस के पत्र - 7

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रूस से लौट कर आज फिर जा रहा हूँ अमेरिका के घाट पर। किंतु रूस की स्मृति आज भी मेरे संपूर्ण मन पर अधिकार किए हुए है। इसका प्रधान कारण यह है कि और-और जिन देशों में घूमा हूँ, वहाँ के समाज ने समग्र रूप से मेरे मन को हिलाया नहीं। उनमें अनेक कार्यों का उद्यम है, पर अपनी-अपनी सीमा के भीतर। कहीं पॉलिटेकनीक्स है तो कहीं अस्पताल, कहीं विश्वविद्यालय है तो कहीं म्यूजियम। विशेषज्ञ अपने-अपने क्षेत्र में ही मशगूल हैं, मगर यहाँ सारा देश एक ही अभिप्राय को ले कर समस्त कार्य-विभागों को एक ही स्नायुजाल में बाँध कर एक विराट रूप धारण किए हुए है। सब-कुछ एक अखंड तपस्या में आ कर मिल गया है।