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रूस के पत्र - Novels
by Rabindranath Tagore
in
Hindi Fiction Stories
सोवियत शासन के प्रथम परिचय ने मेरे मन को खास तौर से आकर्षित किया है, यह मैं पहले ही कह चुका हूँ। इसके कई विशेष कारण हैं और वे आलोचना के योग्य हैं।
रूस की जिस तसवीर ने मेरे हृदय में मूर्ति धारण की है, उसके पीछे भारत की दुर्गति का काला परदा पटक रहा है, हमारी इस दुर्गति के मूल में जो इतिहास है, उससे हम एक तत्व पर पहुँच सकते हैं, और उस तत्व पर गहरा विचार करने से आलोच्य विषय में मेरे क्या भाव हैं, यह सहज ही समझा जा सकता है।
सोवियत शासन के प्रथम परिचय ने मेरे मन को खास तौर से आकर्षित किया है, यह मैं पहले ही कह चुका हूँ। इसके कई विशेष कारण हैं और वे आलोचना के योग्य हैं।
रूस की जिस तसवीर ने मेरे हृदय ...Read Moreमूर्ति धारण की है, उसके पीछे भारत की दुर्गति का काला परदा पटक रहा है, हमारी इस दुर्गति के मूल में जो इतिहास है, उससे हम एक तत्व पर पहुँच सकते हैं, और उस तत्व पर गहरा विचार करने से आलोच्य विषय में मेरे क्या भाव हैं, यह सहज ही समझा जा सकता है।
मॉस्को
आखिर रूस आ ही पहुँचा। जो देखता हूँ, आश्चर्य होता है। अन्य किसी देश से इसकी तुलना नहीं हो सकती। बिल्कुल जड़ से प्रभेद है। आदि से अन्त तक सभी आदमियों को इन लोगों ने समान रूप से जगा ...Read Moreहै।
हमेशा से देखा गया है कि मनुष्य की सभ्यता में अप्रसिद्ध लोगों का एक ऐसा दल होता है, जिनकी संख्या तो अधिक होती है, फिर भी वे ही वाहन होते हैं, उन्हें मनुष्य बनने का अवकाश नहीं, देश की सम्पत्ति के उच्छिष्ट से वे प्रतिपालित होते हैं। वे सबसे कम खा कर, सबसे कम पहन कर, सबसे कम सीख कर अन्य सबों की परिचर्या या गुलामी करते हैं सबसे अधिक उन्हीं का परिश्रम होता है। सबसे अधिक उन्हीं का असम्मान होता है।
स्थान रूस। दृश्य, मॉस्को की उपनगरी का एक प्रासाद भवन। जंगल में से देख रहा हूँ --दिगंत तक फैली हुई अरण्यभूमि, सब्ज रंग की लहरें उठ रही हैं, कहीं स्याह-सब्ज, कहीं फीका बैंगनी-मिलमा सब्ज, कहीं पीले-सब्ज की हिलोरें-सी नजर ...Read Moreरही हैं। वन की सीमा पर बहुत दूर गाँव की झोपड़ियाँ चमक रही हैं। दिन के करीब दस बजे हैं, आकाश में बादल पर बादल धीमी चाल से चले जा रहे हैं, बिना वर्षा का समारोह है, सीधे खड़े पापलर वृक्षों की चोटियाँ हवा से नशें में झूम-सी रही हैं।
बहुत दिन हुए तुम दोनों को पत्र लिखे। तुम दोनों की सम्मिलित चुप्पी से अनुमान होता है कि वे युगल पत्र मुक्ति को प्राप्त हो चुके हैं। ऐसी विनष्टि भारतीय डाकखानों में आजकल हुआ ही करती है, इसीलिए शंका ...Read Moreहै। इसी वजह से आजकल चिट्ठी लिखने को जी नहीं चाहता। कम से कम तुम लोगों की तरफ से उत्तर न मिलने पर मैं चुप रह जाता हूँ। निःशब्द रात्रि के प्रहर लंबे मालूम होने लगते हैं -- उसी तरह 'निःचिट्ठी' का समय भी कल्पना में बहुत लंबा हो जाता है। इसी से रह-रह कर ऐसा मालूम होने लगता है, मानो लोकांतर-प्राप्ति हुई हो। मानो समय की गति बदल गई है -- घड़ी बजती है लंबे तालों पर। द्रौपदी के चीर-हरण की तरह मेरा देश जाने का समय जितना खिंचता जाता है, उतना ही अनंत हो कर वह बढ़ता ही चला जाता है। जिस दिन लौटूँगा, उस दिन तो निश्चित ही लौटूँगा -- आज का दिन जैसे बिल्कुल निकट है, वह दिन भी उसी तरह निकट आएगा, यही सोच कर सांत्वना पाने की कोशिश कर रहा हूँ।
मॉस्को से सोवियत व्यवस्था के बारे में दो बड़ी-बड़ी चिट्ठियाँ लिखी थीं। वे कब मिलेंगी और मिलेंगी भी या नहीं, मालूम नहीं।
बर्लिन आ कर एक साथ तुम्हारी दो चिट्ठियाँ मिलीं। घोर वर्षा की चिट्ठी है ये, शांति निकेतन के ...Read Moreमें शाल वन के ऊपर मेघ की छाया और जल की धारा में सावन हिलोरें ले रहा है -- यह चित्र मानसपट पर खिंचते ही मेरा चित्त कैसा उत्सुक हो उठता है, तुमसे तो कहना फिजूल है।