मुक्ति और अन्य लघुकथाएं - मुक्ति

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लघुकथा   ।।मुक्ति।।तलाक की पीटीशन फैमिली कोर्ट में दाखिल कर लौटते हुए वह इस उहापोह से मुक्त हो चुका था कि कहीं शक के बिना पर लिया गया उसका निर्णय जीवन भर के लिए पश्चाताप का कारण न बन जाए। नये निवास तक आते आते वह उन सारी घटनाओं से दो चार होता रहा जो पिछले दिनों उसकी  नींद चैन सब लूट लिये थे। शक का बीज तो उसी दिन से डल गया था जब दो बच्चों की मां; उसकी पत्नी गाहे-बगाहे घर से गायब रहने लगी थी। वह जब भी आफिस से आता बच्चे दरवाजे पर डेयरी मिल्क खाते  मिलते ।  चॉकलेट