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मुक्ति और अन्य लघुकथाएं - मुक्ति

लघुकथा   ।।मुक्ति।।
तलाक की पीटीशन फैमिली कोर्ट में दाखिल कर लौटते हुए वह इस उहापोह से मुक्त हो चुका था कि कहीं शक के बिना पर लिया गया उसका निर्णय जीवन भर के लिए पश्चाताप का कारण न बन जाए।
 नये निवास तक आते आते वह उन सारी घटनाओं से दो चार होता रहा जो पिछले दिनों उसकी  नींद चैन सब लूट लिये थे।
 शक का बीज तो उसी दिन से डल गया था जब दो बच्चों की मां; उसकी पत्नी गाहे-बगाहे घर से गायब रहने लगी थी। वह जब भी आफिस से आता बच्चे दरवाजे पर डेयरी मिल्क खाते  मिलते ।  चॉकलेट किसने दिया, पूछने पर बच्चे चहक कर  कहते- दीपक अंकल ने। मम्मी कहां  गई,  पूछनचष पर बच्चों का जवाब होता- दीपक अंकल के साथ बाहर गई है।
फिर भी वह जल्दबाजी में कोई ऐसा वैसा कदम नहीं उठाना चाहता था लेकिन चानक एक खबर पर नजर पड़ते ही अनिश्चय की स्थिति जाती रही थी। उसकी पत्नी ने प्रेमी दीपक की उपेक्षा से बेजार होकर थाने में शिकायत दर्ज करवा दी कि शादी करने का वादा करके वह उसका शारीरिक शोषण करता रहा और अब.........
इसके आगे अखबार पढ़ नहीं सका वह। अच्छा हुआ, पहले ही पत्नी से रिश्ता त्याग कर वह अलग रह रहा था। केवल कानूनी मुहर लगनी थी। उसकी प्रक्रिया भी शुरू हो गई।
ईजी चेयर पर पसर कर उसने आँखें मूंद लीं। तभी दरवाजे पर किसी के आने की आहट हुई। सामने जो दृश्य दिखलाई दिया उस पर यकीन नहीं हुआ। मुंह फेरकर वह सोने की कोशिश करने लगा।?
✍कृष्ण मनु
    फरवरी'17
लघुकथा //बुद्धू
वहाँ सड़क अर्द्ध वृताकार हो गई थी। इसलिए पैदल चलने वाले शार्टकट लेकर फिर सड़क पर आ जाते थे। लोगों  के आने-जाने के कारण पगडंडी बन गयी थी। लेकिन पगडंडी के दोनो तरफ कचरा का ढेर लगा रहता था। गंदगी के कारण बदबू उठती रहती थी। फिर भी लोग नाक बंद करके उस पगडंडी से आते-जाते ही थे।
उस पगडंडी से रोज गुजरने वाले एक  सफेद धोती कुर्ता धारक भी थे। रोज की तरह आज भी उन्होंने  धोती समेटी, नाक बंद की और राम राम कहते हुए तेज कदमों से पगडंडी पार करने लगे। उन्हें धोती उठाकर राम-राम कचहते हुए बदहवास से भागते देख एक मंदबुद्धि किशोर हंसने लगा -" खी..खी...खी..। अरे मास्साब गंदा देखा के राम-राम नहीं, रमेश रमेश कहिए।"
-" अरे बुधुआ, मुझे देखकर खिखियाता क्यों है ?  और यह क्या बोल रहा है-रमेश रमेश कहिए। सच में तुम्हारा दिमाग घूमा हुआ है।"
साथ खड़े हम उम्र दूसरे लड़के ने क्रोध से बिफरे मास्टर साहब से कहा-" ठीक कह रहा है बुधुआ। राम-राम कहने से अच्छा है। वार्ड पार्षद के पास जाइए, शिकायत कीजिए,  कूड़ा -कचरा हटवाइए।"
मास्टर साहब समझ गये। वार्ड पार्षद का नाम रमेश था। उन्होंने  एक नजर बुधुआ पर डाली। वे समझ नहीं पा रहे थे, बुद्धू  कौन है।
@ कृष्ण मनु

मुखौटा
कई दिनों से नये पड़ोसी के दोहरे रहन-सहन देख देख कर सेवानिवृत  टीचर हेमंत जी  आश्चर्यचकित रहते। कभी आक्रोशित हो उठते, कभी उनके लिए हंसी रोकना मुश्किल हो जाता ।
वे सोचते, आखिर दोहरा जीवन कैसे जीते हैं  लोग। एक ओर तो पूरा परिवार फैशन में इस कदर डूबा हुआ था कि लगता वे भारत में नहीं,  पेरिस में रह रहे हैं । दूसरी ओर विचार से इतने दकियानूस कि लगता बारहवीं शताब्दी का कोई फैमिली  गलती से वर्तमान युग में आ गई   हो। भूतप्रेत,  तंत्र मंत्र,  जादू टोना आदि पर अटूट आस्था थी उस परिवार की ।
वे देखते और चुप रहते। वैसे दूसरे के फटे में टांग  अड़ाने की आदत नहीें थी उनकी। लेकिन आज सामने का दृश्य देखकर वे खुद को रोक नहीें पाए।
 पड़ोसी की बेटी कालेज जाने के लिए सड़क पर आयी ही थी कि बिल्ली द्वारा रास्ता काटने के  कारण ठिठक कर खड़ी हो गई ।
जब टाइट जिंस  और स्लीवलेस  टाप में  पूरी माड बनी लड़की कुछ देर तक खड़ी रही तब मास्टर जी टहलते हुए करीब आ गए -' क्या हुआ बेटी, खड़ी क्यों  हो ? तुम मेरी पोती की क्लासमेट हो न । आजकल तुम्हारी परीक्षा चल रही है और तुम लेट हो रही हो।'
लड़की को चुप देख मास्टर  जी ने उस पर सरसरी निगाह डालते हुए कहा -' बेटी, लिबास से इतनी माडर्न  बनी हो तो विचार से भी माडर्न बनो। बिल्ली ने रास्ता काट दिया तो तुम परीक्षा छोड़ दोगी?'
 लड़की ने गेट पर खड़ी मां पर एक नजर डाली फिर मास्टर जी को देखा। अनायास उसके कदम आगे बढ़ गए ।#
@ कृष्ण मनु