पुरानी-जींस

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मयकशी ने मयकशी को मयकशी में चूम लिया है...... दिल्लगी ही दिल्लगी में दल्लगी कर झूम लिया है....... नशा ये ज़ाम का है या तुम्हारे नाम का यारों...... नशे में इस जहाँ के जन्नत-ए-कायनात हमने घूम लिया है| उफ़्फ़...... ये समाँ और ये मदहोश रात...... उस पर जमीं यारों की बज़्म-ए-खास का मादक नशा| और....... और ये...... महफिल की रंगीनिया बता रही थी कि दिलों के कितने तार रात के खामोश पहर में...... झिंगूर और फतंगों के स्वर-लहरी संग घुल कर लहू में मिल धमनियों से प्रवाहित होकर गर्म साँसों के रस्ते सतरंगी निनाद रस घोल रही थी| कुछ तारें