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पुरानी-जींस

मयकशी ने मयकशी को मयकशी में चूम लिया है...... दिल्लगी ही दिल्लगी में दल्लगी कर झूम लिया है....... नशा ये ज़ाम का है या तुम्हारे नाम का यारों...... नशे में इस जहाँ के जन्नत-ए-कायनात हमने घूम लिया है|

उफ़्फ़...... ये समाँ और ये मदहोश रात...... उस पर जमीं यारों की बज़्म-ए-खास का मादक नशा| और.......

और ये......

महफिल की रंगीनिया बता रही थी कि दिलों के कितने तार रात के खामोश पहर में...... झिंगूर और फतंगों के स्वर-लहरी संग घुल कर लहू में मिल धमनियों से प्रवाहित होकर गर्म साँसों के रस्ते सतरंगी निनाद रस घोल रही थी| कुछ तारें टूटी होंगी तो कुछ तारें झन-झना कर बिखर गयी होगी| कौन जाने किस सितार ने वायलिन का धुन छेड़ा होगा|

खैर अब हम आते है मुद्दे पर......!!!

ये जो महफिल सजी है........ ये कोई आम नहीं बल्कि बेहद खास-अम-खास महफ़िल है जनाब.......| आज शुभांगी की शादी है|

शुभांगी पहचाना आपने.......!!!

अरे...!!! मैंने बताया ही नहीं अब तक तो पहचानेंगे कैसे?

ज़रा ठहरिये बताता हूँ....... बताता हूँ........ एक-एक करके के सबसे परिचय करवाता हूँ|

शुभांगी निम्न-मध्यम वर्गीय परिवार की एकलौती होनहार बालिके| वैसे तो बहुत ही कम उम्र में शादी का फैसला ले ली है लेकिन उम्र बिंदास है| सही उम्र में सही कदम हमेशा स्वागत योग्य होता|

अब आपलोग सोच रहे होंगे निम्न-मध्यम वर्गीय परिवार और पार्टी इतनी हाई-फाई....... कैसे???

ओहो...!!! समय चक्र यारा.....

समय चक्र......

जी हाँ....! निम्न-मध्यम वर्गीय परिवार ही है लेकिन अब शुभांगी निम्न नहीं रही थी वह आज के समय में शिमला के थ्री स्टार होटल की मालकिन है जहाँ उसके पिता कभी बर्तन धोया करते थे| और आज भी वह अपनी मालकिन बिटिया से उतने ही तनख्वाह लेते है जितने में उनके व उनकी पत्नी का जीवन-यापन सुचारू रुप से चल सके|

खैर ! ये तो हुई शुभांगी.... | अब ज़रा महफ़िल में भी सबसे मिल लीजिए|

पूरब, रिद्धि, रचित, कार्तिका, आदर्श और अट्ठन्नी यानी कि रियान| ये सब बेस्टी-बेस्ट फ्रेंड हुआ करते थे कभी; अब जॉब और ख़्वाब के पीछे उड़ने वाले परींदे| छः साल बाद मिले है सबके-सब कमीने| और मिले है तो ऐसे मिले है कि जैसे सऊदी-अरैबिया के दीवान-ए-खास के सब बादशाह-ए-सरताज हो|

तौबा-तौबा....!!! ये जवानी के दोस्ताना भी न...... जब लौटता है तो जवानी का गुलबंद साथ ही लेकर लौटता है| जिसके पासमीना पर गुलमोहर का ज़राऊ ज़रा गया हो|

ज़रा देखिये तो कर क्या रहे है सबके-सब......!!!

उफ्फ्फ्फ्........

ज़ेहन के कोहरे में यादों की संदूकची खोले..... जामों के दिया-सलाई जला कर कॉलेज के मस्तियों को पिघालाया जा रहा है यहाँ तो.......!!!

अरे-अरे........ चले कहाँ आपलोग??? तनिक ठहरिये जनाब; जरा हमलोग भी इनके यादों के बर्तन में उबली चाय की चुस्की तो ले ही लें|

पूरब - "अरे...यार रिद्धि तू कब तक इस कमीने आदर्श का इंतज़ार करती रहेगी? तेरे को कित्ती बार बोला भी था साला अपना रचित भी तेरे पर जान छिड़कता है पर तुझे तो आदर्श ही चाहिए था| अब पकड़ ले रचित का हाथ....!!! दो-तीन साल में पूरी क्रिकेट टीम तेरे गोद में दे देगा"|

हा हा हा हा........!!! सब ठहाके मारने लगे|

आदर्श - "साले....!!! तू मेरी सेटिंग बिगाड़ेगा...... रुक-रुक मैं तेरी कैसे लेता हूँ"|

अट्ठन्नी(रियान) - "अबे ! तू दारू पी यार......!!! तेरे बस की कुछ नहीं"| - आदर्श के ओर पहला बॉल और ये आदर्श क्लीन बॉल्ड|

कार्तिका - "चुप करो सबके-सब| और रियान तू क्या बक् रहा है आदर्श के बस की कुछ नहीं...........!!! अबे तू भी तो कभी रिद्धि के साथ अपनी वर्जनिटी तोड़ने को बेताब था भूल गया क्या? रिद्धि को देख कर लार चुआना"|

रचित - "अबे हाँ यार........!!! याद है कॉलेज में साला अट्ठन्नी रिद्धि को छूने के लिए कितना बेताब था| और हमारा वह प्लान जिसके पीछे साले ने दस हजार का पार्टी दे दिया था| इसे दूध छूना था और हमने............"!!!

सब जोड़ की ठहाके लगाने लगे| बेचारा अट्ठन्नी(रियान) का मुँह देखने लायक था|

रियान(अट्ठन्नी) - "हाँ-हाँ..... सब याद है सालों| तुमलोगो ने जो चूना लगाया था| ख़्वाब दिखा कर अमूल का पॉकेट जो पकराया था वो भी मेरे ही पैसे के......... !!! नाम भी सालों ने अच्छा-खासा रियान से अट्ठन्नी कर दिया था उस दिन..... और आज तक.....| लेकिन रचित तू कौन सा दूध का धुला हुआ था| याद है सादिया नूर....... !!! अगर उस दिन पूरब और मैं न बाचाता तो साला आज तू प्लेट का सलाद सा कुतरा हुआ सादिया के भाई का चखना बन गया होता"|

पूरब - " हाँ यार रचित......!!! तूने तो कमीनापंती का हद ही लांघ दिया था बे| भूले न भुलाया जाता वो तेरी कमीनी हरकत| साला आज रश्क़ हो रही है मेरे को तेरे से| अबे नौवीं क्लास में भी कोई ऐसी हरकत करता है क्या"?

कार्तिका - "आखिर मुझे भी कोई बताएगा माज़रा क्या हुआ था"???

रिद्धि - "हाँ यार...... !!! कुछ इंट्रेस्टिंग हुआ होगा हमें भी सुनाओ| तनिक दिल-ए-हाल कोई तो बताओ? क्या अफ़साना छुपाया है हमसे उसी पे कुछ मुशायरा फरमाओ"|

अट्ठन्नी(रियान) - "हुआ क्या था.......मैं बताता हूँ!!! गर्मी का महीना था इलेक्ट्रीसिटी पॉल में कुछ खड़ाबी होने के कारण इलेक्ट्रीशियन काम कर रहे थे खंभे पे...... गर्मी बर्दास्त न हो रहा था तो छत पर ही जनाब ने सोने का प्लान बनाया| हुज़ूर को मालूम ही न था कि पड‍़ोस के फ्लेट में कोई मुस्लिम फैमिली भी रहते है| पाँच मूँछडंडे लड़के; मियाँ-बिवी और आफ़रीन सी खूबसूरत बला की उनकी बिटिया.......

कार्तिका - "उफ़्फ़!!! आगे फिर क्या हुआ यार"??

पूरब - "आगे......!!! आगे ये हुआ कि उस रात पड़ौसी की बिटिया यानी कि जिनका नाम सादिया नूर था| उन के नूर-ए-इनायत पड़ते ही जनाब तपती गर्मी में भी ठंढ़क महसूस करने लगे थे मानों काशमीर के वादियों में पहुँच गये हो| मियाँ को इश्क़ हो गया था पहली नज़र वाला इश्क़.......!!! वो *कहते है न दिल आया गदही पे तो परी क्या चीज है* कुछ वैसा ही वाला इश्क़"|

रिद्धि - "ओहो..... !!! तो ज़नाब इश्क़ में छान चुके रात| भई वाह्ह्ह..... !!! आगे तो बता यार अब सब्र न हो रहा"|

अट्ठन्नी(रियान) - "वो गाना है न - *रात बाँकी बात बाँकी होना है जो हो जाने दो* आधी रात के बाद कुछ यही हुआ था| तारों से सजी आँगन में चाँद का गुलदस्ता इठला रहा था| एक तरफ पाँच भाईयों संग माँ सोयी हुई थी दूसरी तरफ मियाँ मज़नू के औलाद......!!! प्यार के भगवान पर अब हवस का हैवान हावी होने लगा| पलटनी ले-लेकर पहुँच गये सादिया के बगल में ऐसे जैसे उन्हें कुछ मालूम ही न हो|

रचित - "अबे बस कर यार......!!! इज्जत का फालूदा आज ही बना लेगा क्या"???

पूरब - "हाँ-हाँ.....!!! तूने मर्यादा-पुरुषोत्तम वाला काम किया था न... ! - कि तेरी बेज्जती हो रही| साला रास-रचैया; कृष्ण कन्हैया बनते तुझे शर्म नहीं तो हम क्यों शरमायें"| - मुँह चिढ़ाते हुए बोला|

रिद्धि - "अरे यार......!!! कंटीन्यू रखो......"!!!

पूरब - "दिमाग दिल पर हावी सा हो गया था| वासना अपने चरम पर जब पहुँचने लगा तब रचित ने चाँद के रौशनी में संगमर की उस मूर्ति को अपने बाँहों में भर लिया| हाथों ने गुस्ताखी भरी शरारत की और कुर्ति के नीचे नाभि के गोलाई में अँगलुलियों के पोर को डाल दिया| लेकिन तभी.....

कीर्तिका - "तभी क्या......."???

अट्ठन्नी(रियान) - "तभी सादिया ने आँखें खोल दी......!!! और उठ कर बैठ गयी| उफ़्फ़....! - क्या हालत हुआ था याे रचित के बच्चे का"|

रिद्धि - "फिर क्या हुआ यार"???

पूरब - "फिर होना क्या था? रचित का धड़कन एरोप्लेन से भी तेज; ऐसा लग रहा था जैसे अभी वह सबको रचित का हरकत बता देगी लेकिन वो तो उठ कर नीचे को जाने लगी....| रचित को लगा शायद वो खुद ही सजा देगी रचित को| डर के मारे हलक में प्राण अटक गया| भागो तो उठा तक ना जा रहा था| कमर के बल घिसक-घिसक कर रचित सीढ़ियों तक गया था उसके बाद फूर्र.......!!! पर बात यहीं खत्म न हुई| कुछ दिनों तक कोई विवादित चहल-कदमी न हुई तो एक शाम फिर पहुँच गया छत पर|

कार्तिका - "तो क्या सादिया भी प्यार करने लगी थी? क्या उसने अपने परिवार को कुछ बताया नहीं रचित ले हरक़तों के बारे में......"???

अट्ठन्नी(रियान) - "ना रे......!!! वो किसी से कुछ न बतायी थी| अगर बतायी होती तो चंडाल चौकरी की चुड़ैल जो उसकी माँ थी वही काफी थी रचित के लिए| उसके भाई बाप का न० तो शायद मुर्दे पर हाथ धोने के समय आता"|

कार्तिका - "ओह....! - फिर क्या हुआ"???

अट्ठन्नी(रियान) - "होना क्या था पुराना प्यार जागृत हो गया उस शाम सादिया को छत पर देखकर| मियाँ रोमियों बनने के लिए फिर से उस दिन छत पर बिस्तर लगा कर सोने आ गया| पर पता नहीं सादिया के आने से पहले ही आँख लग गयी| आधी रात को जब आँख खुली तो अँधेरी रात में हल्की-हल्की दिखती लाल कमीज वाली ने रचित के अंदर के हैवान को जगाने लगा| उलट कर; पुलट कर पहुँच गया पड़ोसी के बगल में......| और फिर जो हुआ सो माशाल्लाह ही हुआ...."!!!

सब खामोश थे कहानी में बार-बार सस्पेंस से विस्मित हो रहे थे सभी यार.....!!! पर था रचित का कहानी मजेदार|

पूरब - खामोशी को तोड़ते हुए - "जब रचित का बदमाश दिल हाथों के रास्ते सादिया के बदन का मुआयना करना शुरु किया फिर तो रब ही राखे| रचित एकदम्म हक्का-बक्का सा रह गया गया फूले हुए मोटे पेट गदरायी बदन नजाकत के जगह आफत सी जान पड़ी थी| बिचारा न सोच पा रहा था न समझ पा रहा था आखिर पिछले दिनों के बीती रात को रचित ने ऐसा कुछ किया भी न था फिर पेट नें बच्चा कैसे हो गया यार? और तभी उन मूँछडंडों में से कोई जाग गया| शायद रेस्ट-रूम जाना था उसके ट्रॉच के रौशनी में जो रचित ने देखा वो किसी तूफान से कम न था| ओह माई गॉड...... रास-रचैया के तब होश उड़ गये जब उसने देखा कि यह तो सादिया की मैया थी"|

सबके ठहाके से हॉल ऐसे गूँजा जैसे आसमान में बादल जोर-जोर से गरज रहा हो| तभी शुभांगी आकर सबको अपने पति से मिलाने लगी| और इस "पुरानी जींस" के मंडली के बारे में बताने लगी कि क्या अहमियत रखते है उनके जिंदगी में ये "पुरानी जींस" मंडली| पूरब ज्यादा पी लेने के वजह से बेहोश हो गया था तो आदर्श, रचित मिलकर उसे बिस्तर पर छोड़ आया था|

"पूरब भैया.... !!! हाँ उन्हीं की तो देन है शुभांगी को जिंदगी| उनकी फस्ट लव अंजली का दिल ही तो धड़कता है शुभांगी का दिल बनकर..... शरीर में....!!! वो दिन मैं कैसे भूल सकती हूँ जब पूरब भैया और अंजली दीदी शिमला घूमने आये थे और पहार से गिर कर अंजली दीदी उन्हें छोड़ कर चली गयी थी और जाते-जाते अपना दिल मुझे दे गयी थी| मेरे दिल के छेद के बारे में यहाँ के एक सोशल संस्था ने इंटरनेट के जरिये दुनिया भर के लोगो से सहायता माँगी थी उन्हीं में से "पुरानी जींस" करके युवाओं की एक कमेटी ने मेरी सारी खर्चाएँ उठा ली थी| वे मुझसे मिलना चाहते थे और शिमला भी घूमना चाहते थे| उन दिनों मुझे नहीं मालूम था कि ये टीम कॉलेज स्टूडेंट का है वैसे भी मैं बच्ची थी| वो आये तो दो थे पर लौट कर एक ही गये उसके बाद अब ही आये है और आये तो पूरी टीम के साथ...........| मैं बता नहीं सकती इनलोगो ने मुझे क्या से क्या बना दिया है पर मैं पूरब भैया को अपने धड़कन के अलावा कुछ नहीं दे सकती"| - शुभांगी के छल-छलाते आँख से झड़ते आँसू में "पुरानी जींस" के हर-एक शख्स को दिल से दुआएं दे रही थी|

शुभांगी के इस रुप को देखकर सबको ऐसा लगा मानों उनकी अंजली जिंदा हो उठी| कार्तिका का भी ये टीम शुक्रगुज़ार है जिसने पूरब को बड़ी एहतियात बरतते हुए मुद्दत से सँभाला है| और एक बार फिर से "पुरानी जींस" के सभी सदस्यों को एकजुट करके उस दौर में ले गयी जहाँ के बारे में सबने सोचना तक बंद कर दिया था|

"शुक्रिया कार्तिका हमारे दोस्त को एक नयी जिंदगी देने के लिए| और एक बार फिर से "पुरानी जींस" टीम को जिंदा करने के लिए| हम सब मिलकर आज वादा करते है कि कभी भी किसी भी जरूरतमंद को अगर इस टीम के जरिये मदद कर सकते है तो पीछे नहीं हटेंगे| यही हमारी दोस्ती और "पुरानी जींस" टीम की सार्थकता होगी|

©-राजन-सिंह